Friday, August 21, 2015

नगर निकायों के चुनाव

भाजपा-आरएसएस राज में प्रदेश में 129 निकायो में हुए चुनावों में भले ही राज्य स्तर पर भाजपा ज्यादा बोर्डो पर जीत का परचम फहराने का दावा कर रही हो। लेकिन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के गृह क्षेत्र झालावाड में भाजपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। इस जिले में झालावाड नगर परिषद में कांग्रेस ने 20 सीटे जीतकर बोर्ड में बहुमत साबित कर दिया जबकि भाजपा को 15 सीटों पर संतोष करना पडा बारां,अन्ता, धौलपुर(वसुंधरा का गृहक्षेत्र), करौली में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा।
       15 नगरपरिषदो में से 10 में कांग्रेस को बढत मिली है,अजमेर नगर निगम में भाजपा बामुश्किल 60 मेंसे 31 सीट जीती है वहा के. दोनो विधायक मन्त्री है सांसद केन्द्र में मन्त्री है कमोबेश यही स्थिति पूरे प्रदेश की है।
कई निकायों जैसे उदयपुर के भिण्डर आदि स्थानों पर तो सत्ता-मद में चूर भाजपा-आरएसएस को बेहद शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा है जहां उसके ज्यादातर प्रत्याशियों की तो जमानत ही जब्त हो गयी और खाता भी नहीं खिला ।
हर जिले में बड़ी संख्या में जीतकर आये निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या से यह स्पष्ट है कि राज्य की जनता विकल्प की तलाश में है और जहॉ भी उसे यह उपयुक्त विकल्प मिला है जनता ने उसे भरपूर समर्थन देकर विजयी बनाया है ।
  वोट प्रतिशत में 00.86% यानि 1 % से कम का अन्तर है. लोकसभा चुनाव में 26 % का अन्तर था। 
          बीजेपी सत्ता में है और प्रदेश के दो तिहाई लोगो ने भाजपा-आरएसएस सरकार के खिलाफ मतदान किया है,परंतु कांग्रेस को विपक्ष में होने तथा जनता में सरकार के खिलाफ भारी नाराजगी होने के बावजूद भी जनता के द्वारा समर्थन ना मिलने से यह स्पष्ट है कि जनता कांग्रेस द्वारा निभाई जा रही विपक्ष की भूमिका से भी संतुष्ट नहीं है।
ये चुनाव-परिणाम भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के लिए चिन्ता व चिन्तन का विषय हैं।
          भाजपा-आरएसएस की वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार ने सत्ता सम्भालते ही सबसे स्थानीय निकायों एवम पंचायती राज व्यवस्था में व्यापक लोकतांत्रिक अधिकारों तथा प्रक्रियाओं पर खुलेआम हमला बोलते हुये उसे कमजोर व सीमित करने का काम किया है। पूर्व में लागू प्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली से चुनाव होते तो निश्चित रूप से भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाता । पुन: इस अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली को लागू करके भाजपा-आरएसएस सरकार ने स्थानीय निकायों एवम पंचायती राज में खरीद-फरोख्त, बाड़ेबंदी जैसी कुप्रथाओं को प्रारम्भ कर धनबल-बाहुबल धारकों का लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कब्जा सुनिश्चित कर दिया है । इसके अलावा शिक्षा, बच्चों, शौचालयों जैसे प्रावधानों को बलात थोपने से भी जनता के एक बहुत बड़े सबसे गरीब-गुरवा शोषित-पीड़ित तबके को तो पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही निकाल कर बाहर फेंक दिया है ।
     सबसे बड़े आश्चर्य और अफसोस की बात तो यह है कि भाजपा-आरएसएस सरकार लोकतंत्र पर  ये हमले करती रही सीमित करती रही परंतु राज्य के मुख्य विपक्ष-दल कांग्रेस ने इसे रोकने के लिये कोई प्रयास तक नहीं किया आखिर क्यों? ये यक्ष प्रश्न आज जनता के जेहन में तो है ही और कांग्रेस को भी इस जनविरोधी कदम का विरोध ना करने का राजनैतिक मूल्य तो चुकाना ही होगा ।
       राजस्थान की जनता आज विकल्पहीनता की स्थिति से दो-चार होती हुई दोनों शोषक-वर्गों की हितैषी आमजन विरोधी नीतियों की राजनीति करने वाली पार्टियों के बीच फुटबाल बनने को मजबूर है ।
                     ठोस विकल्प, विश्वसनीय ठोस राजनैतिक विकल्प यदि राज्य में मौजूद हो तो जनता इन दोनों ही दलों से आज़िज़ आ चुकी है ,इन चुनाव परिणामों के द्वारा एक बार पुन:राज्य की जनता ने वैकल्पिक राजनीति की बात करने वालों तथा उसके लिये संघर्ष करने वालों को दिया है ।

No comments:

Post a Comment